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ये दिन न जाने कैसे बीतते जा रहे हैँ लगता हैँ जैसे

ये दिन न जाने कैसे
बीतते जा रहे हैँ
लगता हैँ जैसे  मेरे हाथ से ये दिन फिसलते जा. रहे हैँ
जबकि अभी भी मुकाम आते हैँ मंजिले भी मिल. जाती हैँ
लेकिन वक़्त  इन सुखद लम्हो को मुट्ठी  मे बाँध नहीं पाता  हैँ
तभी तो  मै अपनी विचलित काया
को  झरझर होने से. बचा नहीं पाया हूँ
जबकी अंतिम आंनदो के 
महोत्सव  का  समापन का क्षण भी
जीवन मे आ चुका हैँ

©Arora PR
  अंतिम आंनदो का महोत्सव
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अंतिम आंनदो का महोत्सव #कविता

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