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गुज़री सबा जो छू के तो मौजें मचल मचल गयीं ख़ामोश है

गुज़री सबा जो छू के तो मौजें मचल मचल गयीं
 ख़ामोश है दरिया अब और तवाज़ुन है जहां में 
 बस एक ये जान है जो हमसे न फिर संभाली गयी
 Musings - 9/4/19
गुज़री सबा जो छू के तो मौजें मचल मचल गयीं
 ख़ामोश है दरिया अब और तवाज़ुन है जहां में 
 बस एक ये जान है जो हमसे न फिर संभाली गयी
 Musings - 9/4/19