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न जाने हम ख़ुदसे क्या आस लगाए बैठे है जो पाना चाहते

न जाने हम ख़ुदसे क्या आस लगाए बैठे है
जो पाना चाहते है वो सब चीजें हमसेही रूठी है केहते है जो कुछ भी होता है वो अच्छे के लिए होता है पर दिमाग़ में एक सवाल घुमता है हमेशा ये मेरे साथ ही क्यूँ होता है?
न जाने हम ख़ुदसे क्या आस लगाए बैठे है
जो पाना चाहते है वो सब चीजें हमसेही रूठी है केहते है जो कुछ भी होता है वो अच्छे के लिए होता है पर दिमाग़ में एक सवाल घुमता है हमेशा ये मेरे साथ ही क्यूँ होता है?

केहते है जो कुछ भी होता है वो अच्छे के लिए होता है पर दिमाग़ में एक सवाल घुमता है हमेशा ये मेरे साथ ही क्यूँ होता है?