सुधा दी, ये सबने अपने अपने पापा को पत्र लिख कर भावुक कर दिया, आपको तो पता है जब में अतिभावुक होता हूं, आपकी गोद में सर रख कर, सुधा दी खो जाता हूं... अन्तर्मन लोक आदरणीय सुधा दी, मन तो सुधी कर के बोलने को था, सबके सामने कहना अच्छा नहीं ना। लो शाम की डाक में आपके नालायक भैया की चिट्ठी आई है। कमाल हो ना आप भी साथ रहती हो फिर भी चीटियां लिखवाती हो। पता है अब e मेल का युग है, जब जी चाहे किसी को देख लो बातें कर लो। But Di... Haye वो आपका बार बार डाकिए को देखना, वो घर से जरा सा आगे निकला नहीं, आपका आवाज़ लगाना* भैया मेरा कोई लेटर आया क्या* डाकिया मुस्करा के बोलता, डाक्टर दीदी आया होता तो आपको आवाज़ लगा के देता, एक दो बार तो जान बूझ कर चिट्ठी होता हुए आगे निकल गया, आपको सिर झुकाए लौटता देख कर चिल्लाया डाक्टर दीदी आपकी चिट्ठी है सुधा दी, आपके जैसे चरित्र, संभव नहीं भगवान जी ने आपको बनाकर कहा होगा बस एक ही बहुत है 😍 ये आज कल के बच्चे क्या जानेंगे letter क्या होता था, डाकिया कितना important।