किस कंधे पर सर रखकर रोऊं इस बेजान बुढ़ापे में, जिन्हें चलना कभी मैंने सिखाया था वह व्यस्त है आज अपनी ही मौजों में, बेटियां चली गई अपने ससुराल वरना वह जरूर रखती मेरा ख्याल, बच्चे, बहुएं व्यस्त है मोबाइल की क्रांति में, सीरियल्स के ठहाकों में, कुछ बातें, कुछ जज्बात मेरे भी हैं पर उन्हें सुनने वाला कोई नहीं, वह मेरे गांव की गलियां, बूढ़े बरगद का पेड़ भी गांव में ही रह गया, शहर में आकर इन तंग गलियों मे मैं जैसे कहीं खो गया, हां दोस्तों के कंधे पर सिर रखकर रो सकता था पर वह साले तो मुझसे पहले ही जिंदगी से चले गए!! Challenge 18 - 'किस कंधे पर सर रख रोऊँ' 8 पंक्तियों की रचना कर प्रतियोगिता में भाग लें। विशेष:- आवश्यक नियम पिन पोस्ट के कैप्शन में पढ़ें। 🌠 आज के अत्यंत ही रोचक विषय 'किस कंधे पर सर रख रोऊँ' पर रचना कीजिये। जिसमें एक वृद्ध मनुष्य कहता है कि हर कोई अपने-अपने कार्य में लगा है किसीको समय कहाँ है जो मेरी व्यथा सुने मैं स्वयं में ही घुट रहा हूँ। #yqbaba #yqdidi #tmkosh 📢🔊 यदि आप अन्य कवियों की रचना व उनकी लेखन शैली को पढ़ते हैं तो आपकी लेखनी में समय की आवश्यकता के अनुरूप धार आएगी जो आपकी रचना को सभी से अलग करेगी।