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बघेली कविता अस गुस्सा लागत ही जब मेहेरिए गुलती

बघेली कविता 


अस गुस्सा लागत ही जब
मेहेरिए गुलती हैं मोबाइल।

भूंख के मारे जिउ छटपटाए
त‌ऊ घिनही नहीं छोड़ती है मोबाइल।

जबहिन देख‌ए तबहिन
उआ मोबाइल म बिजी रह‌ए।

खाना के नाम म आंखी काढंय
धव क‌उने बात से चिढी रह‌ए।

अपना खाए खाए के मोटान रह‌ए
अ हमरे पीछे पड़ी रहय।

सलगा दिन लय राशन पानी
हमरे ऊपर चढ़ीं रहय।

फरमांइस  खातिर जानय हमहीं
होइगा फेर बिहान।

महेरिअन से भगवानव हांरे
इआ जानय सारा जहान।

       ( राइटर सूरज दुबे) ) हास्य कलाकार
बघेली कविता 


अस गुस्सा लागत ही जब
मेहेरिए गुलती हैं मोबाइल।

भूंख के मारे जिउ छटपटाए
त‌ऊ घिनही नहीं छोड़ती है मोबाइल।

जबहिन देख‌ए तबहिन
उआ मोबाइल म बिजी रह‌ए।

खाना के नाम म आंखी काढंय
धव क‌उने बात से चिढी रह‌ए।

अपना खाए खाए के मोटान रह‌ए
अ हमरे पीछे पड़ी रहय।

सलगा दिन लय राशन पानी
हमरे ऊपर चढ़ीं रहय।

फरमांइस  खातिर जानय हमहीं
होइगा फेर बिहान।

महेरिअन से भगवानव हांरे
इआ जानय सारा जहान।

       ( राइटर सूरज दुबे) ) हास्य कलाकार
surajdubey7797

suraj dubey

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