मेरा गांव मां के आंचल के छांव में । अपने पापा के गांव में ।। अपने घर में । मस्तियों के शहर में ।। हरे-भरे खेतों में । अपने चहेतों में ।। नंग-धड़ंग बच्चों के गुटों में । बुजुर्गों के भूतों वाले किस्सों में ।। बच्चों के निश्छल मुस्कानों में । फुस के घरवालों के सुखों के मकानों में ।। सुबह-शाम की स्वच्छ फिजाओं में । बूढ़े पीपल की दुआओं में ।। रहता हूं वहां इक पल भी सुकुं है मिलता । निकल पड़ना इनसे मुश्किल है बनता ।। शहर को जब आना पड़ता है । जहां हवा भी मतलबी होता है ।। मैं नहीं मेरा दिल रो पड़ता है । मानो जिस्म से रूह निकलता है ।। #गांव #गांव_की_मिट्टी #गांवकीबातें #गांवठी #गांव_की_यादें #गांव_की_सुंदरता #Pk_pankaj