मैं अंकिता भंडारी, पिता का सहारा बनने चली थी, लेकिन समाज ने फिर हरा दिया, इस जिस्म की आग ने, फिर एक बार एक बेटी को मौत के घाट उतार दिया, उस पिता की नम होती आंखें , देखी जाती नहीं, ईश्वर तू बता, क्या तुझे यह देख पीड़ा आती नहीं? इंसानों की टोली में, यह कैसे भक्षक घूम रहे, अपने पैसे की शक्ति से, यह जिस्म की भूख मिटा रहे, पंख फैलाती हूं, तो पंख काट दिए जाते हैं, पूछती हूं आज मैं, उड़ने की कीमत हम बेटी ही क्यों चुकाते हैं ? कब समझेगा समाज, कि लड़की केवल एक भूंख नहीं होती आशाओं की पेटी लिए हुए, कभी कभी उसकी भी नींद पूरी नहीं होती ! #ankitabhandari #yourquotedidi #yourquotebaba #humanity #womenempowerment #betibachaobetipadhao #emotionalquotes #poetry