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न जाने कौनसी बिल्ली थी... न जाने कौनसी बिल्ली थी,

न जाने कौनसी बिल्ली थी...

न जाने कौनसी बिल्ली थी, जिसने रस्ता काटा था ।
न जाने कैसी काली घड़ी थी, जिसमें चुनके छांटा था ।।

अकेली इवीएम पे भी, मड़ नहीं सकते सारा दोष ।
लच्छेदार वादों के भ्रम में, कई भुला बैठे थे होश ।।

भृमजाल की आग में घी के, बाबा अन्ना भी है दोषी।
विधवा होती संस्थाओं पे, सही नही इनकी खामोशी ।।

बलिदानों की सदियों से देश ने पाई थी आज़ादी ।
दशकों की मेहनत से चार चांद जुटा पाई आज़ादी ।।

थोक में तोडें जा रहे अब चांद सितारे सारे के सारे ।
बिल्ली के रस्ता काटने से फूट रहे हैं भाग हमारे ।।

नवरत्न बिके सो बिके, रोज़ी रोटी पे भी चली गदा ।
अंग्रेजी राज से बद्तर, बिन जुर्म हम भुगत रहे सजा ।।

बापू तेरे सीने को भी छलनी करने से आये न बाज़ ।
एक एक कर सभी स्तंभों पर गदा चला रहे ये आज़ ।। 

अहिंसक किसानों को भी, साजिशन फंसा रहे ।
काले कानूनों के फच्चर, खेती का दम घुटा रहे ।।

सभी पैंतरे ध्वस्त हुए अब अन्ना अस्त्र निकाला है ।
कुम्भकरण के अनुयायी को फिर से चारा डाला है ।।

चार दिन का नाटक करके कर लेंगे उनसे समझौता ।
छद्म किसान इर्द-गिर्द कर, बदलेंगे कानून मुखौटा ।।

नये रूप को सर्व ग्राह्य, ठहराने की होगी कोशिश ।
भांड मिडिया ढोल बजा, मुद्दे को ही करेगा ओझिल ।।

जनलोकपाल के हो हल्ले ने, बिठा दिया था गद्दी पर ।
जनलोकपाल का आज कोई  नाम ना लेता रत्ती भर ।।

बिल्लियों का दौर नहीं अब बिलाओं का है बोलबाला ।
लोकतंत्र के आयामों को तार तार कर बिखेर डाला ।।

-आवेश हिन्दुस्तानी 29.01.2021

©Ashok Mangal #AaveshVaani 
#aazadi 
#loktantra
#Kisan
न जाने कौनसी बिल्ली थी...

न जाने कौनसी बिल्ली थी, जिसने रस्ता काटा था ।
न जाने कैसी काली घड़ी थी, जिसमें चुनके छांटा था ।।

अकेली इवीएम पे भी, मड़ नहीं सकते सारा दोष ।
लच्छेदार वादों के भ्रम में, कई भुला बैठे थे होश ।।

भृमजाल की आग में घी के, बाबा अन्ना भी है दोषी।
विधवा होती संस्थाओं पे, सही नही इनकी खामोशी ।।

बलिदानों की सदियों से देश ने पाई थी आज़ादी ।
दशकों की मेहनत से चार चांद जुटा पाई आज़ादी ।।

थोक में तोडें जा रहे अब चांद सितारे सारे के सारे ।
बिल्ली के रस्ता काटने से फूट रहे हैं भाग हमारे ।।

नवरत्न बिके सो बिके, रोज़ी रोटी पे भी चली गदा ।
अंग्रेजी राज से बद्तर, बिन जुर्म हम भुगत रहे सजा ।।

बापू तेरे सीने को भी छलनी करने से आये न बाज़ ।
एक एक कर सभी स्तंभों पर गदा चला रहे ये आज़ ।। 

अहिंसक किसानों को भी, साजिशन फंसा रहे ।
काले कानूनों के फच्चर, खेती का दम घुटा रहे ।।

सभी पैंतरे ध्वस्त हुए अब अन्ना अस्त्र निकाला है ।
कुम्भकरण के अनुयायी को फिर से चारा डाला है ।।

चार दिन का नाटक करके कर लेंगे उनसे समझौता ।
छद्म किसान इर्द-गिर्द कर, बदलेंगे कानून मुखौटा ।।

नये रूप को सर्व ग्राह्य, ठहराने की होगी कोशिश ।
भांड मिडिया ढोल बजा, मुद्दे को ही करेगा ओझिल ।।

जनलोकपाल के हो हल्ले ने, बिठा दिया था गद्दी पर ।
जनलोकपाल का आज कोई  नाम ना लेता रत्ती भर ।।

बिल्लियों का दौर नहीं अब बिलाओं का है बोलबाला ।
लोकतंत्र के आयामों को तार तार कर बिखेर डाला ।।

-आवेश हिन्दुस्तानी 29.01.2021

©Ashok Mangal #AaveshVaani 
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#loktantra
#Kisan
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Ashok Mangal

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