Nojoto: Largest Storytelling Platform

वक़्त की नाराज़गी बढ़ती ही रही और तन्हा मेरी ज़िन्दगी

वक़्त की नाराज़गी बढ़ती ही रही
और तन्हा मेरी ज़िन्दगी गुज़रती रही
सब तो बदल गये, मै ही क्यूं ठहर गई
ये सवाल मुझे, कई बार बेचैन कर गई...


( कृपया अनुशीर्षक में  पूरी कविता पढ़े )
 वक़्त की नाराज़गी बढ़ती ही रही
और तन्हा मेरी ज़िन्दगी गुज़रती रही
सब तो बदल गये, मै ही क्यूं ठहर गई
ये सवाल मुझे, कई बार बेचैन कर गई

वक़्त के साथ सभी तो चलते रहे
और हम अपनी तन्हाईयों मे जलते रहे
'कल' जो बित गया, वो मेरे 'आज' का हिस्सा बना
वक़्त की नाराज़गी बढ़ती ही रही
और तन्हा मेरी ज़िन्दगी गुज़रती रही
सब तो बदल गये, मै ही क्यूं ठहर गई
ये सवाल मुझे, कई बार बेचैन कर गई...


( कृपया अनुशीर्षक में  पूरी कविता पढ़े )
 वक़्त की नाराज़गी बढ़ती ही रही
और तन्हा मेरी ज़िन्दगी गुज़रती रही
सब तो बदल गये, मै ही क्यूं ठहर गई
ये सवाल मुझे, कई बार बेचैन कर गई

वक़्त के साथ सभी तो चलते रहे
और हम अपनी तन्हाईयों मे जलते रहे
'कल' जो बित गया, वो मेरे 'आज' का हिस्सा बना

वक़्त की नाराज़गी बढ़ती ही रही और तन्हा मेरी ज़िन्दगी गुज़रती रही सब तो बदल गये, मै ही क्यूं ठहर गई ये सवाल मुझे, कई बार बेचैन कर गई वक़्त के साथ सभी तो चलते रहे और हम अपनी तन्हाईयों मे जलते रहे 'कल' जो बित गया, वो मेरे 'आज' का हिस्सा बना