अब नहीं हो रहा है गुज़ारा मिलो दिल ने आवाज़ देकर पुकारा मिलो इक मुलाकात से दिल भरा ही नहीं लौट के फ़िर से आओ दुबारा मिलो माह-रुख़ देखिये तो उठा कर नज़र चांदनी कर रही है इशारा मिलो हर तरफ़ दुख ही दुख है नहीं है सुकूं दो पलों की खुशी दो कि यारा मिलो शर्म से आपकी जब झुके है नज़र देख लूँ जन्नतों का नज़ारा मिलो डूब कर मर न जाये सफ़ीना-ए-दिल डूबते क़ल्ब का तू सहारा मिलो आपसे मिल रहे हैं बड़े सुर्ख़रू ख़ैर 'सैफ़ी' है क़िस्मत का मारा मिलो 212 212 212 212 माह-रुख़ - चाँद जैसे शक़्ल वाला क़ल्ब - दिल सफ़ीना-ए-दिल - दिल की कश्ती सुर्ख़रू - कामयाब #yqdidi#yqbhaijan #yqwriters#yqquotes