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कब तक खुद को यूं खुद से दूर रख सकूँगा जाने कब तक स

कब तक खुद को यूं खुद से दूर रख सकूँगा
जाने कब तक सुकून की तलाश में मैं जलता रहूँगा
लगने लगा है अंजान हुँ आज अपने आप से मै 
जाने जीने के लिए कितने मुखौटे पेहनूँगा
इस नकली दुनिया का एक नकली हिस्सा बन चुका हूँ
अपनी तलाश भी भूल चुका हूँ
हारना तो सिखाया ही नही किसने 
जितने के लिए कितना जलूँगा
थकने का हक़ मांग रहा हु खुदसे 
कब खुदको वो हक देने के क़ाबिल बनूँगा 
लेती गयी जिंदगी मुझे सब थोक के भाव
और मै देता रहा बेबस होकर 
उमीद दिया करता हूँ खुद को 
की इक दिन तेरा भी आयेगा 
वो ख़ुशी जीसको ढूढता है वो भी तुझे ढूंढ लेगी
जाने कब मेरा भी दिल हसेगा
कब दुसरों के लिए नही खुद के लिए हसेगा
इतना कहने के बाद खुद को यही समझ लिया
जो खुश हो सके कोई दूसरा तेरे दिये की तरह जलने से 
तो रोशन कर दूसरों के सवेरे 
कभी तेरे लिए भी कोई दिया बन के आयेगा
बस तब तक  ........

©PARINDA
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