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दंगों की आंच में रोमांस ।। बोलते पन्ने ।। कविता वि

दंगों की आंच में रोमांस ।। बोलते पन्ने ।। कविता विनोद श्रीवास्तव


दंगों के हालात में एक इंसान के तौर पर आपेक्षित संवेदनशीलता जब न दिखे तो एक कवि का मन किस तरह के सवाल उठाता है, ये कविता वैसे ही सवालों से श्रोता को घेर लेती है। दिल्ली दंगों का एक साल पूरा होने के मौके पर इस कविता को सुनिए।  दिल्ली के विनोद श्रीवास्तव की इस कविता को आवाज दी है शिवांगी ने।
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दंगों की आंच में रोमांस ।। बोलते पन्ने ।। कविता विनोद श्रीवास्तव दंगों के हालात में एक इंसान के तौर पर आपेक्षित संवेदनशीलता जब न दिखे तो एक कवि का मन किस तरह के सवाल उठाता है, ये कविता वैसे ही सवालों से श्रोता को घेर लेती है। दिल्ली दंगों का एक साल पूरा होने के मौके पर इस कविता को सुनिए। दिल्ली के विनोद श्रीवास्तव की इस कविता को आवाज दी है शिवांगी ने।

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