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मोहन एक खत लिख‌‌ भेज रही हूं,        मैं तो उद्धव

मोहन एक खत लिख‌‌ भेज रही हूं,
       मैं तो उद्धव के हाथ..
चिठ्ठी भेज रहीं हूं साजन, 
       लिखकर मन की बात..
मिलने को तुमसे बेकरार हम थे,
       करनी थी कुछ बात..
हम तो ना जाने दुनिया की बातें, 
       तुम ही अब समझ में आते..
प्यार नहीं भूलें हैं हम, 
       याद हैं हमको प्यारे मोहन..
आना हैं होली खेलने, 
       आना हैं तुम्हें रंगने..
रंगों को ले तैयार रहेंगे हम, 
       जब आओगे मिलने तुम.......

©दिव्यांशी त्रिगुणा "राधिका"
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