मन का कमरा हमेशा बिखरा हुआ रहता है नहीं, उसे खुद बिखेर कर बैठने की आदत है कोई खयाल मेहमान बनकर आए तों, बिना समेटे ही उसी के साथ दिन गुजर जाता है अगर कभी कहीं नया खयाल आए, बाक़ी सब अपनी अपनी जगह समेटे हुएं रहता है कभी दिनभर बुझा बुझा सा रहता है तो कभी दिनभर चहल पहल खुशी की बात तब होती है जब जब चांद उस कमरे में झांक कर देखता उससे बातें करता , उसे महसूस करवाता है उसका कमरा सिर्फ उसका नहीं उन दोनों का एक ही हैं M ©Meena #mini