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घनघोर बादल, उफ़नाता जल सागर का परीक्षा हैं ये यारा

घनघोर बादल, उफ़नाता जल सागर का
परीक्षा हैं ये यारा ,नहीं हैं सामान डर का।

डर से निकल पाया जो, समझो वो जीता
धरती में जो समा सके, सच्ची वो सीता।
भगोड़ा नहीं, योद्धा बनो जीवन समर का।
परीक्षा हैं ये यारा ,नहीं हैं सामान डर का।

प्रहलाद, विष्णु विष्णु हुआ भक्ति में तल्लीन
हिरणयाकश्यप हार गया, कुचक्र रच संगीन
अजेय बना जो हुआ पथिक आध्यात्मिक डगर का।
परीक्षा हैं ये यारा ,नहीं हैं सामान डर का।

मीरा हुई कृष्ण दीवानी, बन गई वो भक्त मतवाली
हँसते हँसते पी गई, जो दी राणा ने विष की प्याली।
भगवतकृपा कहाँ होता हैं असर, अमृत, जहर का
परीक्षा हैं ये यारा ,नहीं हैं सामान डर का।

©Kamlesh Kandpal
  #bhkti