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अलंकरण की छंटा बिखरी छंद मे हो गया भटकाव रस की भाव

अलंकरण की छंटा बिखरी
छंद मे हो गया भटकाव
रस की भाव भंगिमा बिगरी 
बस भावों का रहा प्रभाव
सृजन को कलम पकड़ु कैसे 
भय कंपन है हाथों में
किधर समेटुं किसे सहेजुं
समझ न आयें बरसातों में।। शब्दों का तुफान उठ रहा है
थामुं कैसे किन हालातों में
किधर समेटुं किसे सहेजुं
समझ न आयें बरसातों में ।।

किसे कहुं समझे कौन
सब मगन है अपनी रागों में
त्रस्त मन हो गया अकेला
अलंकरण की छंटा बिखरी
छंद मे हो गया भटकाव
रस की भाव भंगिमा बिगरी 
बस भावों का रहा प्रभाव
सृजन को कलम पकड़ु कैसे 
भय कंपन है हाथों में
किधर समेटुं किसे सहेजुं
समझ न आयें बरसातों में।। शब्दों का तुफान उठ रहा है
थामुं कैसे किन हालातों में
किधर समेटुं किसे सहेजुं
समझ न आयें बरसातों में ।।

किसे कहुं समझे कौन
सब मगन है अपनी रागों में
त्रस्त मन हो गया अकेला