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आज किताबें सजी हुई हैं, हर घर की आलमारी में।। लेक

आज किताबें सजी हुई हैं,
हर घर की आलमारी में।। 
लेकिन शायद ज्ञान की बातें,
नहीं जेहन की क्यारी में।।
ज्ञान का मंदिर विद्यालय अब,
केवल एक व्यापार बना।। 
जाति के कारण जल पीने से, 
गुरु, शिष्य का काल बना।। 
फीस के नाम पर केवल अब,
पैसा लेना ही भाया है।। 
मानव-मानव शत्रु बने,
मानवता-तरु कुम्हलाया है।। 


@poetryofsoul

©Shashank मणि Yadava "सनम"
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