बसन्त के नवपल्लव सी ताजगी तुझमें सरल सलिल सरोवर की कुमुदिनी हो तुम सावन के श्यामल मेघों सी मनोहर चपल चलित चमक से भरी दामिनी हो तुम नृत्यमय हो जाती धरा स्पर्श से तुम्हारे गूॅंजती शून्य में एक अटूट रागिनी हो तुम लावण्यमयी यह रूप तुम्हारा अप्रतिम है जहां में हे! सृष्टा की अनुपम कृति अभिनंदिनी हो तुम होता रहता हूॅं चकित विस्मृत नियति पर अपने धन्य हुआ यह जीवन जो मेरी अर्द्धांगिनी हो तुम ©Kirbadh #Flower #Love #poem