प्रेयसी की प्रीत यदि, श्रेष्ठ लग रही हो तो। मातृ पितृ प्रीत रीत, इसे भूलना नहीं।। भारती की लाज हेतु, प्राण दे दो गम नहीं। हार कर जिंदगी से, प्राण त्यागना नहीं।। मित्रता करो जो यदि, कृष्ण व सुदामा जैसी। बड़े बन जाओ किंतु, मित्र भूलना नहीं।। झूठी शान झूठे मान, झूठे सम्मान के लिये। सत्यता का स्वाभिमान, तुम भूलना नहीं।। ©कवि गुलशन "श्रृंगार प्रेमी"...✍️ शिष्टाचार #Morningvibes