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ये बात उस दौर की है जब थामा था किसी ने हाथ मेरा क

 ये बात उस दौर की है जब थामा था किसी ने हाथ मेरा
करते थे वादे वफ़ा के जब उनका दिल ही था आसरा मेरा
सुकूं थी मेरे इस जेहन में जब गुल-ओ-गुलज़ार था मंजर मेरा 
ये बात उस दौर की है जब विरान नही था घर मेरा

©Saevit Sarp
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