गोया फर्क़ रहा ज़रूर, मगर लड़कपन पे भी रहीं जिम्मेदारियाँ भरपूर, बाप से बचना, माँ से छिपना, मनाने, रिझाने को बहाने बनाना, भूख दबाना, चोट छुपाना, पिटकर हंसना, आंसू पी जाना, और पलभर में सब भूलकर फिर मस्ती में तर जाना, बचपन जश़्न का तराना, हो सके तो जज़्बा ये ताउम्र संजोना..! .. 🌿 खुशामदीद.. 💞 २५ नवमंबर २०१६ की लिखी.