नहीं अब दिल में कुछ लिखने का शौक, नहीं रहा अब वह पुराना शायरी का दौर, बस दिल में उभरे वो चंद अल्फाज ,दिल में ही रहकर दफन हो गए आज, ना रही कोई दिल की अब आरज़ू, ना रहा कोई आखों का हसीन ख्वाब, वक्त वक्त की बात,वक्त का ही ये खेल, नहीं रहा यहां अब विचारों का मेल , ना जाने कैसा हो गया अब लोगों का अंदाज़, करने लगे अब ,लेखन कला को नजरंदाज । ©Dayal "दीप, Goswami.. Swati kashyap