इस तस्वीर को जी कर देखा है मैंने। मैं स्वयं डूब रहा था। अनभिज्ञ मुझे स्वयं में डूबाया जा रहा था। थे वहीं सभी वो रिश्ते, वो चाचे, मामे, भाइयों के रिश्ते। वो दादी, चाची, मामियों के रिश्ते। सुखमय जीवन में वे नर्क के फरिश्ते। मुझे तैरना आता नहीं था, उन्हें हाथ बढ़ाना नहीं था। वो तो व्यस्त थे सभी, हमारी शाखों को काटने में, पिताजी के आँखों पर पट्टियों को बाँधने में। लेकिन मुझे अपनी माँ को, बहन को बचाना था। इसलिए मुझे डूबना था, और बहुत समय तक डूबते जाना था। डूबते ही जाना था। ©Sukhdev डूबने का यथार्थ। The reality of drowning. #drowning