*नफरत मिटायें मोहब्बत जगायें* हवाओं में घुल रहा नफरतों का जहर गुस्से में उबल रहा हर गांव और शहर सबके चेहरों पर हैं अजीब सी लकीरें लगता है सब जागते हैं आठों ही प्रहर उम्मीद रखें किसी से ये मुमकिन कहाँ दुआयें देंने में भी टूटने लगता है कहर हर कोई सींचता दुश्मनी के पौधे यहाँ लगता है जिन्दगी यूँ ही जाएगी गुजर उदासी है चेहरे पर खुशी गुम हो गई आती नहीं खुशी की हल्की सी लहर करो कभी तो प्यार की बातें मेरे यारों नफरतों पर ही ना करो जिन्दगी बसर कदम बढ़ाओ मोहब्बत का तुम भी होगा उन पर भी उल्फत का असर ये सारी दुनिया बन जाएगी बहिश्त प्यार मोहब्बत से रहेंगे हम अगर आओ थामें हाथ एक दूजे का हम बढ़ चलें चुनकर मोहब्बत की डगर मिटाकर नफ़रतें अपने दिल से हम प्यार से भर दें हर गांव और शहर *ॐ शांति*