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हर गली, हर कूचा, हर शहर अच्छा लगा., उसकी मौजूदगी

  हर गली, हर कूचा, हर शहर अच्छा लगा.,
उसकी मौजूदगी में, हर मंज़र अच्छा लगा..

वो मोहब्बत का माँझा, और मैं कोई पतंग.,
उसकी मोहब्बत का, ये असर अच्छा लगा..

फोन कटा, तो मरने-मारने पर उतर आयी.,
उसके मासूम चेहरे पे, ये तेवर अच्छा लगा..

उसकी मोहब्बत में , खुदा को भूल बैठा हूं.,
एक शख़्स, मुझको इस कदर अच्छा लगा..

 शब-ए-हिज्र के ख्याल से , सिसक उठती है.,
उफ्फ ! उसकी आँखों में, ये डर अच्छा लगा..

जब कभी , हम तन्हाई से उकता गये 'बिट्टू'.,
दो घड़ी तुमको सोचा, सोचकर अच्छा लगा..

मेरे हँसने पे हँसती हो , रोने पे रो पड़ती हो., 
सच कहूं तो ‘बिट्टू’ , तुम्हें पाकर अच्छा लगा..

©Balram Bathra
  #अच्छा_लगा