(guilt) शीशे के खिलौने,,हाथो में लेकर तोड़ देता हूं,,कांच के पैकरों को भी कब कहां ठीक छोड़ देता हूं,,तेरी ही तलब में ,,मैं अपनी आदत बिगाड़ रहा हूं।। # अब के साल मिट्टी में ही दफन रह गए ,,मेरे आंगन में उगने वाले डेलिये के वो पौधे,,जिंदगी के बागीचे से मैं अपनी ,,रूहानियत बिगाड़ रहा हूं।। # खुद के साए की रफाकत मुझे एक बेहशी में तब्दील कर रही है,,अंधेरों से मुहोबत में मैं अपनी ,, सख्शियत बिगाड़ रहा हूं।। # हैरान है सारा आलम ,,कैसे मैं अपने ही खून से लिखे खतों को चाट जाता हूं,, इस जख्मों के जायके में मैं अपनी ,, आदत बिगाड़ रहा हूं ।। # अपनी हार का जशन मैं हंसकर मनाया करता हूं अक्सर ,,बंद बोतल के दरिया में डुबकियां लगाकर ,,मैं अपनी ,,हालत बिगाड़ रहा हूं।। # तेरे जाने के बाद ,,,आईने से नफरत को बरकरार रखा है मैने ,,खुद को भी पहचान न पाऊं इक दिन ,,कुछ इस तरह से अपनी सूरत बिगाड़ रहा हूं।। # बात तेरी वफ़ा से शुरू मेरे फरेब पर आकर खतम होती है अक्सर ,,शराब को करके सजदा अपने लिए सारी कयामत बिगाड़ रहा हूं। # ©#शुन्य राणा #शराब