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देखता हूं इस कांच के पार से रेत घड़ी के गिरते कण;

देखता हूं इस कांच के पार से
रेत घड़ी के गिरते कण;
हर कण एक कहानी कहता है..

कहानी हम इंसानों के जीवन की
जो है रेत रूपी समय की नींव पर,
एक अनोखा नींव;
जो पल पल फिसलता है और क्षण में पलट कर परिवर्तित भी हो जाता है, 
ठीक वैसे ही
जैसे इस रेत घड़ी की रेत।

समय ,देता है एक हाथ से,
दो हाथ से ले लेता है
बादल निचोड़,कुछ छिटें
तपते जमीन पर बिखरेता तो है,
सूरज बन 
उस नमी को है जाता पी।

ये जो इस रेत घड़ी में है बन्धन
है यह समय का ही बांधा हुआ
बंध जाते हैं मनुष्य भौतिक बंधनों में समय समय पर
पर समय कहां रहता गुलाम,
गुलाम बना रखा है सबको
बस स्वयं ही आज़ाद।

पर क्यूं न इन बंधनों को तोड,
फिसला जाए समय के साथ
और चालाकी से पलट दिया जाए इस रेत घड़ी को
ताकि बना रहे यह रेत हमारी नींव हमेशा। #रेतघड़ी
देखता हूं इस कांच के पार से
रेत घड़ी के गिरते कण;
हर कण एक कहानी कहता है..

कहानी हम इंसानों के जीवन की
जो है रेत रूपी समय की नींव पर,
एक अनोखा नींव;
जो पल पल फिसलता है और क्षण में पलट कर परिवर्तित भी हो जाता है, 
ठीक वैसे ही
जैसे इस रेत घड़ी की रेत।

समय ,देता है एक हाथ से,
दो हाथ से ले लेता है
बादल निचोड़,कुछ छिटें
तपते जमीन पर बिखरेता तो है,
सूरज बन 
उस नमी को है जाता पी।

ये जो इस रेत घड़ी में है बन्धन
है यह समय का ही बांधा हुआ
बंध जाते हैं मनुष्य भौतिक बंधनों में समय समय पर
पर समय कहां रहता गुलाम,
गुलाम बना रखा है सबको
बस स्वयं ही आज़ाद।

पर क्यूं न इन बंधनों को तोड,
फिसला जाए समय के साथ
और चालाकी से पलट दिया जाए इस रेत घड़ी को
ताकि बना रहे यह रेत हमारी नींव हमेशा। #रेतघड़ी