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व्यथित मन की व्याकुलता प्रचंड लहरों की भाँति शोर

 व्यथित मन की व्याकुलता प्रचंड लहरों की भाँति शोर करती है,

ठहराव तो चाहती है पर पीड़ा का सागर न तिरती है..!

गिरती हैं जैसे नदियाँ न चाहते हुए खारे समुन्दर में,

पल पल अपनी मिठास को भी धीरे धीरे ख़त्म करती है..!

©SHIVA KANT
  #Vyatit

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