दुनियाँ इक कोरी डायरी सी है और इंसान......इंसान, इस कोरी डायरी के कोरे पन्नों सा है इन कोरे पन्नों पर बो दिए जाएं अगर प्रेम के पुष्प तो खिलखिला उठेंगी बग़ियाँ महक उठेगा ये चमन और उग जायेंगी इन कोरे पन्नों पर अप्रतिम कविताएँ परंतु दुःखद है कि बोये जाते हैं, इन पन्नों पर द्वेष, दुराचार, दुर्व्यवहार और उग आते हैं दुर्गंध युक्त घृणाओं के खरपतवार इन घृणा जनित खरपतवारों पर छिड़कना है क्षेम मुझे मिटाके घृणा का नामोनिशाँ इन पर लिखना है प्रेम मुझे मैं चाहता हूँ कि हर पन्ने को डुबाकर प्रेम में कस्तूरी सा तर कर दूँ और प्रेम के पुष्प उगाकर इस डायरी को महकाऊँ महकाऊँ इतना कि समूची डायरी ही इतर कर दूँ #चौबेजी ©Choubey_Jii