हमें इतना ही जानना है - माटी जैसे मुडाए जाए मुड जाए। मटका बनाने वाले के हाथ की लकीरें नहीं तय करती मटके की सुंदरता। अगर आपके पास माटी ही कम हो, और अगर आप उस माटी से शो पीस न बना पाए, तो आप दीप ही बना दो, रोशनी ही घर को सजा देगी। हम जिस तरह अपनी सोच (माटी) को मोड़ेंगे, उसी तरह हम बन जाएंगे। हमारी किस्मत से हम कुछ बन नहीं सकते हैं, सिर्फ अपनी मेहनत और शिद्दत से बन सकते हैं। अगर हमारे पास चीजें ही कम हैं, तो हम उसमे से ही कोहिनूर बना लेंगे। ______________________