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पढ़ले मेरे दिल को मेरे चेहरे से ; मुकम्मल तरीके से

पढ़ले मेरे दिल को मेरे चेहरे से ;
मुकम्मल तरीके से बेनकाब हुं मैं ।

तू आंखे मूंदकर महसूस कर मुझे;
एक नाजुक मिजाज ख्वाब हूं मैं ।

सोच सोच के तू परेशा क्यूं है ;
सीधी साधी खुली किताब हूं मैं ।

मुझे न समझ तेरे रास्ते का पत्थर ;
हर तख्तों ताज से दूर हूं मैं ।।

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पढ़ले मेरे दिल को मेरे चेहरे से ;
मुकम्मल तरीके से बेनकाब हुं मैं ।

तू आंखे मूंदकर महसूस कर मुझे;
एक नाजुक मिजाज ख्वाब हूं मैं ।

सोच सोच के तू परेशा क्यूं है ;
सीधी साधी खुली किताब हूं मैं ।

मुझे न समझ तेरे रास्ते का पत्थर ;
हर तख्तों ताज से दूर हूं मैं ।।

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