सोच संभली नहीं जिन र्मशों से, उन्हें पर्दे कि जरूरत हो गई है... हय़ा तो कब कि बेच दी हमनें, अब हयात को पर्दे कि जरूरत हो गई लगा लो जो बंदिशें तुम चाहो क्यों मैं तेरी नज़रों में औरत हूँ पर तेरा मोल कुछ भी नहीं मेरे आगे जब तलक मैं खुद शौहरत हूँ ©Anushi Ka Pitara #पर्दा #औरत #रिवाज़ #संस्कार #adishakti