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एक दिन खोई थी उधेड़बुन में कुछ चल रहा था मेरे मन म

एक दिन खोई थी उधेड़बुन में
कुछ चल रहा था मेरे मन में
ना रोक सकी अपने अंतर्मन को अपने ही अस्तित्व के इस जंग में क्यों कहते हैं लोग हमें अबला क्यों करते हैं हमारा ही तिरस्कार क्योंकि हम ने ही दिया इनको अधिकार
क्यों उठती हैं उंगलियां सिर्फ हमारी ही और क्योंकि हमने ना उठाई आंख इनकी ओर ऐसा क्यों है कि हम हैं ताड़न के अधिकारी क्योंकि दे दिया
 उपमा हमें नारी 
कैसे किया यह फरमान जारी
अब बस कुछ ऐसा हो की अंत हो जाए इन कुरीतियों का बदल जाए विचार इन रूढ़ि वादियों का
तुमने ही अपने अस्तित्व पर उठाए कई सवाल हैं दे दो जवाब सारे अगर मुक्ति का ख्याल है यह जंग है अब तुम्हारे अस्तित्व की तुम ही हो भाग्यविधाता अपने भविष्य की
तोड़ दो सारी बेड़ियों को उड़ चलो उन्मुक्त गगन में वीरांगनाएं हो तुम, पा लो जो तुम्हें पाना है, तुम ही से तो यह जहां है तुम ही से तो यह जमाना है।
                   सुधा मिश्रा

©Sudha Mishra अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

#standAlone
एक दिन खोई थी उधेड़बुन में
कुछ चल रहा था मेरे मन में
ना रोक सकी अपने अंतर्मन को अपने ही अस्तित्व के इस जंग में क्यों कहते हैं लोग हमें अबला क्यों करते हैं हमारा ही तिरस्कार क्योंकि हम ने ही दिया इनको अधिकार
क्यों उठती हैं उंगलियां सिर्फ हमारी ही और क्योंकि हमने ना उठाई आंख इनकी ओर ऐसा क्यों है कि हम हैं ताड़न के अधिकारी क्योंकि दे दिया
 उपमा हमें नारी 
कैसे किया यह फरमान जारी
अब बस कुछ ऐसा हो की अंत हो जाए इन कुरीतियों का बदल जाए विचार इन रूढ़ि वादियों का
तुमने ही अपने अस्तित्व पर उठाए कई सवाल हैं दे दो जवाब सारे अगर मुक्ति का ख्याल है यह जंग है अब तुम्हारे अस्तित्व की तुम ही हो भाग्यविधाता अपने भविष्य की
तोड़ दो सारी बेड़ियों को उड़ चलो उन्मुक्त गगन में वीरांगनाएं हो तुम, पा लो जो तुम्हें पाना है, तुम ही से तो यह जहां है तुम ही से तो यह जमाना है।
                   सुधा मिश्रा

©Sudha Mishra अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

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Sudha Mishra

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