💕Good morning ji💕🙋,☕☕☕☕☕🍵🍵🍵🍧🍧🍧🍨🍨🍨👧🌷🌷🌷🌷💐🐒🙏
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जब हम यह मानते हैं कि कोई हमारा अहित कर रहा है तब विरोध का भाव पैदा होता है। जब यह बात समझ में आ जाए कि मेरा भाग्य कोई नहीं बदल सकता, और न ही मैं किसी का भाग्य बदल सकता हूं, तब विरोध नहीं हो सकता। जो कुछ मुझे मिलता है, उसका कारण मेरे अलावा कोई नहीं हो सकता। यह विचार पैदा होते ही विरोध समाप्त हो जाता है। सृष्टि में अच्छा और बुरा नहीं होता। यह हमारे मन की उपज है। इसी प्रकार कर्म करने की इच्छा भी ईश्वर ही पैदा करता है। हम पैदा नहीं कर सकते। हां, कर्म जाना तो हमारे नाम से ही जाता है। इसीलिए हम किसी को अच्छा-बुरा कहने लग जाते हैं। राग-द्वेष् इसी से पैदा होते हैं। इससे मुक्त होने का मार्ग है क्षमा! पहले स्वयं अपनी आत्मा से क्षमा। फिर जिनको हम शत्रु मानते हैं। जिन लोगों ने हमारा अहित किया। इसके बाद उनसे क्षमा, जिनका हमने अहित करने का प्रयास किया। आहत किया, जिनके दिलों को ठेस पहुंचाई। वे भी हमें क्षमा कर सके, ईश्वर उनको ऎसी बुद्धि और शक्ति दे। तब अन्य प्राणियों से—मानव, पशु-पक्षियों से, पेड़-पौधों आदि से क्षमा मांगें। सारा अहंकार, जो विरोध का पर्याय था, गल जाएगा। मैत्री का सकारात्मक भाव जाग्रत हो सकेगा। आप किसी एक पौधे से नित्य मैत्री भाव के साथ बात करें। देखना, कितनी तेजी से बढ़ता है। फलता-फूलता है। विरोध जहां जीवन को नीचे गिराता है, वहीं मैत्री नए शिखर देता है। सेतु बनकर मनों को जोड़ता है। भाई-चारे का, संगीतमय जीवन का संदेश देता है। यही तो सब धर्मो का मूल है।
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