पत्थरों के शहर में सब , इंसानों को कुचलते , दौलत के लिए मचलते , बेतहाशा भागे जाते हैँ ..... कभी -कभी मन की शांति के लिए, य़ा खुद को आस्तिक कहलवाने के लिए , पत्थरों को पूजने आते हैँ ....... सब कहने की बातें हैँ कि हर इंसान में भगवान होते हैँ, इतनी भगदड़ में किसी को , इंसानों में भगवान कहां नज़र आते हैँ .... Astik