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गुनगुनी धूप ये दिसम्बर की ! याद दिलाती है एक सितम

गुनगुनी धूप ये दिसम्बर की !
याद दिलाती है एक सितम गर की !!
               कहता था हमसफर हूँ तेरा !
                जज्बातों की फिर क्यूं न कदर की !!
मौसम की तरह बदल गया वो !
तन्हा जिन्दगी मैंने बसर की !!
             दीवाना था शायद खुबसूरती का !
             सादगी "अनु " की न उस पर असर की !! गुनगुनी धूप में 

ज़िंदगी के रंगों को अपने शब्दों में क़ैद करें
लोगों के क्रिया कलाप
फूल-पौधों, तितलियों, पंछियों के रंग-ढंग 
कामगारों के जोश और उमंग 

#गुनगुनीधूप
गुनगुनी धूप ये दिसम्बर की !
याद दिलाती है एक सितम गर की !!
               कहता था हमसफर हूँ तेरा !
                जज्बातों की फिर क्यूं न कदर की !!
मौसम की तरह बदल गया वो !
तन्हा जिन्दगी मैंने बसर की !!
             दीवाना था शायद खुबसूरती का !
             सादगी "अनु " की न उस पर असर की !! गुनगुनी धूप में 

ज़िंदगी के रंगों को अपने शब्दों में क़ैद करें
लोगों के क्रिया कलाप
फूल-पौधों, तितलियों, पंछियों के रंग-ढंग 
कामगारों के जोश और उमंग 

#गुनगुनीधूप