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उसे भी न याद मेरी आयीं, जो कहती थी मै नहीं हूँ पर

उसे भी न याद मेरी आयीं, जो कहती थी  मै नहीं हूँ पराई ,
दुनिया से बग़ावत करतें रहें, उनकीं हर चाल समझते रहें, 
दिमाग की आँखे देख रहीं,  पर दिल को कुछ न दिखाईं देता था, 
दिमाग़ की बातों को बोल के झूठा,  दिल रात रात बस रोता था, 
रात थी , मैं था  , साथ मेरे तन्हाई थी,  दरवाज़ा तो बंद रहा,  पर याद तेरी घुस आयी थी , 
कमरे में घुप्प अंधेरा था, जैसे रात अमावस की काली ,
आंखो में नींद न आयीं थी , नयनों मे लालिमा छाई थी ।
वो रात अमावस की काली, जहाँ तेरी याद थी , मै था , और मेरी तन्हाई थीं । फ़जीहत-ए-इश्क़
उसे भी न याद मेरी आयीं, जो कहती थी  मै नहीं हूँ पराई ,
दुनिया से बग़ावत करतें रहें, उनकीं हर चाल समझते रहें, 
दिमाग की आँखे देख रहीं,  पर दिल को कुछ न दिखाईं देता था, 
दिमाग़ की बातों को बोल के झूठा,  दिल रात रात बस रोता था, 
रात थी , मैं था  , साथ मेरे तन्हाई थी,  दरवाज़ा तो बंद रहा,  पर याद तेरी घुस आयी थी , 
कमरे में घुप्प अंधेरा था, जैसे रात अमावस की काली ,
आंखो में नींद न आयीं थी , नयनों मे लालिमा छाई थी ।
वो रात अमावस की काली, जहाँ तेरी याद थी , मै था , और मेरी तन्हाई थीं । फ़जीहत-ए-इश्क़