तुसी जहन च नित रोज आंदे ओ ,दस फिर लोका नू कि कवाँ तुसी दूर-दूर ही रहंदे ओ, दस फ़िर दिद्दा नू कि कवाँ मै जी रही तेरे ल्यी, तेरे ल्यी ही लिख रहियाँ जो गोर नाल पढ़ सकदे ओ,दस फ़िर क़ब्र ते अपनी कि लिखाँ जित्थे नाल सनैपा पोनदे सी, कैफे वाले नू कि कवाँ मै ता बिखरी मोती वांगू, तागा मेरा घटिया सी तां भी हस्दी रहनी आँ, दस फिर दर्दा नू कि कवाँ गुरुद्वारे गयी, मंदर गई, गिरजाघर सारे लब आई तां भी शुभम तैनू शर्म ना आई, दस फ़िर किस रब नू की कवाँ ©Fit Shayar #Glazing