काम क्या तेरा भी वो हश्र हुआ जो हश्र मेरा हुआ ऐसी आपाधापी में जो होता था वो सब गया आज गुज़र जाएगा मेरा तेरी रहम की रोटी से क्या कल भी तू हीे आएगा देने मेरी भूख को सांत्वना मेरे बच्चों की सुध भी क्या तू ले लेगा पटाखे फोड़ने से पहले क्या सोचा तूने मेरे काम का बीमारी तो चलो नही पहचानती इंसान की ज़रूरत काम की तुम तो समझ सकते हो अहमियत काम की झूठी तस्सली और बातों से तुम खुद को बहलाते हो असली मुद्दे से साहब क्यों हमको भटकाते हो दिल पे रक्खो हाथ अपने और फिर यह बात करो दो रोटी नही भीख में हमको काम का इंतेज़ाम करो। क्या तेरा भी वो हश्र हुआ जो हश्र मेरा हुआ ऐसी आपाधापी में जो होता था वो सब गया आज गुज़र जाएगा मेरा तेरी रहम की रोटी से क्या कल भी तू हीे आएगा देने मेरी भूख को सांत्वना