जब भी दर्द की हैसियत बड़ जाती है,
सपनो के लिए फुर्सत कम पड़ जाती है,
याद जब होस्टल वाले लम्हो की विकट सताती है,
तब तब एक कॉंफ़्रेंस कॉल पर,
हॉस्टल की वो महफ़िल सज जाती है,
का मर्दे, अरे पापा से ऐसे नही बोलते,
बेटा है तू मेरा, जैसे शब्दो की आवाजे जब आती है,
उन जन्नत वाले दिनों की यादे ताजा हो जाती है, #जलज