इंतज़ार ◆◆◆◆ लम्हा लम्हा मोम की तरह टपक रही हूँ मैं। क्यों ज़िन्दगी की तरह सुलग रही हूँ मैं। डर है मौत का या खामोशी इख्तियार की। बेमतलब सोई आंखों से जग रही हूँ मैं। छोड़ो जाने दो कल पूछेंगे हाल तुम्हारा। चद्दर ओढ़ अब बेफिक्री से सो रही हूँ मैं। मत आंसुओं को दर से बाहर सरकने देना। अलविदा अब एक कौर से पिंघल रही हूँ मैं। अब कुछ यादों को दरकिनार कर रही हूँ मैं। इक उजले कपड़े का इंतज़ार कर रही हूँ मैं। क्यों तुम चले आये हो इस अंधेरे को लूटने क्या नही पता इन्ही अंधेरों में ढल रही हूँ मैं। खामोशी हर तरफ से ओढ़ ली है अब तो तुम करो तारीफ जमकर अब सुन रही हूँ मैं। साँसों के धागे से माला के मोती तक सुनो बिन अनसुने जज्बातों से उलझ रही हूँ मैं। तुम्हे हालात बस ऊपर से दिखते होंगे है ना न जाने कितनी मौतें आज मर रही हूँ मैं। इस मुखोटे की झूठी शान से देखो सुनो जरा आज एक डर से मुक्त होकर निकल रही हूँ मैं। - नेहा शर्मा - नेहा शर्मा मौत का डर