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शब्दों के बीज पनपाते, कहीं मोहब्बत की फ़सल..! हार

 शब्दों के बीज पनपाते,
कहीं मोहब्बत की फ़सल..!

हार मिलती शब्दों से कहीं,
होती ज़िन्दगी कहीं सफल..!

कहीं दिखता असर ख़ूबियों भरा,
खिलता ख़्वाहिशों का कमल..!

पिरोते अल्फ़ाज़ों को एहसासों की डोर से,
ख़ूबसूरत बनती यूँ ही ग़ज़ल..!

कहीं उत्पन्न होता शब्दों के बीच से,
क्रोध का पौधा अटल..!

अहँकारी सोच को करता,
कहीं अपने शब्दों से धवल..!

उतरते मन से उभरने लगते,
शब्दों की माया अति नवल..!

©SHIVA KANT(Shayar)
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