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#Ramleela सीतीजी की खोज में सुग्रीव मित्रता | Eng

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सीतीजी की खोज में सुग्रीव मित्रता केबाद दक्षिण दिशा के वानर वीरों के सामने समुद्र अजेय बाधा बना हुआ था. जामवंतजी के सुझाव पर हनुमानजी ने प्रभु श्रीराम का स्मरण कर समुद्र लांघने को अतुलनीय छलांग लगा दी. किन्तु, जामवंतजी द्वारा जगाए जाने केबाद भी कहीं कुछ शक्तियां जागृत होने से छूट न गई हों, इसकी परीक्षा केलिए देवताओं ने सुरसा को समुद्र में परीक्षा केलिए भेजा. हनुमानजी प्रभु कृपा से अपनी शक्तियों का श्रेष्ठतम परिचय देकर विजयी हुए. लंका पहुंचकर छोटे आकार में हनुमानजी प्राचीर के भीतर गए. सीताजी को खोजते-खोजते मच्छर के आकार में रावण केमहल में गए. फिर विभीषणजी के सहयोग से वे सीताजी तक पहुंचे. सीताजी को सब बताकर प्रभु के शीघ्र मिलने समाचार दिया. माँ के आशीर्वाद से फल-फूल खाए. पेड़ तोड़े. राक्षसों को मारा. रावण ने क्रोध में मेघनाद को भेज कर हनुमानजी को पकड़ लिया. हनुमानजी ने भरी सभा में रावण को निस्तेज कर दिया. क्रोधित रावणने दंड स्वरूप हनुमानजी को मात्र वानर समझकर पूंछ जलाने को कहा. राक्षसों ने पूंछ पर तेल में भीगे कपड़े लपेट डाले पर पूंछ थी कि बढ़ती ही जाती थी और अब तेल-भीगे कपड़ों से  लिपटी हनुमानजी की पूंछ में आग लगा दी. हनुमानजी ने अपनी शक्तियों के प्रयोग से न सिर्फ़ पूंछ बड़ी करने का खेल दिखाया बल्कि श्रीराम का प्रभाव छोड़ने केलिए अपनी जलती पूंछ से सारी लंका में आग लगा डाली. अब हनुमानजी ने समुद्र में कूदकर पूंछ की आग बुझाई और माता सीता का संदेश प्रभुतक पहुंचा सकें, इसके लिए वे सीताजी के पास गए. लंकावासी और रावण लंका-दहन के अपूर्व दृश्य से जहँ हतप्रभ और भयभीत थे वहीं सीताजी को लंका वास में पहली बार प्रभु के दूत के प्रताप से शांति मिल सकी. 
🙏 जै श्रीराम! 🌺
🙏 जै हनुमान! 🌺

©Shiv Narayan Saxena लंका-दहन. 

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सीतीजी की खोज में सुग्रीव मित्रता केबाद दक्षिण दिशा के वानर वीरों के सामने समुद्र अजेय बाधा बना हुआ था. जामवंतजी के सुझाव पर हनुमानजी ने प्रभु श्रीराम का स्मरण कर समुद्र लांघने को अतुलनीय छलांग लगा दी. किन्तु, जामवंतजी द्वारा जगाए जाने केबाद भी कहीं कुछ शक्तियां जागृत होने से छूट न गई हों, इसकी परीक्षा केलिए देवताओं ने सुरसा को समुद्र में परीक्षा केलिए भेजा. हनुमानजी प्रभु कृपा से अपनी शक्तियों का श्रेष्ठतम परिचय देकर विजयी हुए. लंका पहुंचकर छोटे आकार में हनुमानजी प्राचीर के भीतर गए. सीताजी को खोजते-खोजते मच्छर के आकार में रावण केमहल में गए. फिर विभीषणजी के सहयोग से वे सीताजी तक पहुंचे. सीताजी को सब बताकर प्रभु के शीघ्र मिलने समाचार दिया. माँ के आशीर्वाद से फल-फूल खाए. पेड़ तोड़े. राक्षसों को मारा. रावण ने क्रोध में मेघनाद को भेज कर हनुमानजी को पकड़ लिया. हनुमानजी ने भरी सभा में रावण को निस्तेज कर दिया. क्रोधित रावणने दंड स्वरूप हनुमानजी को मात्र वानर समझकर पूंछ जलाने को कहा. राक्षसों ने पूंछ पर तेल में भीगे कपड़े लपेट डाले पर पूंछ थी कि बढ़ती ही जाती थी और अब तेल-भीगे कपड़ों से  लिपटी हनुमानजी की पूंछ में आग लगा दी. हनुमानजी ने अपनी शक्तियों के प्रयोग से न सिर्फ़ पूंछ बड़ी करने का खेल दिखाया बल्कि श्रीराम का प्रभाव छोड़ने केलिए अपनी जलती पूंछ से सारी लंका में आग लगा डाली. अब हनुमानजी ने समुद्र में कूदकर पूंछ की आग बुझाई और माता सीता का संदेश प्रभुतक पहुंचा सकें, इसके लिए वे सीताजी के पास गए. लंकावासी और रावण लंका-दहन के अपूर्व दृश्य से जहँ हतप्रभ और भयभीत थे वहीं सीताजी को लंका वास में पहली बार प्रभु के दूत के प्रताप से शांति मिल सकी. 
🙏 जै श्रीराम! 🌺
🙏 जै हनुमान! 🌺

©Shiv Narayan Saxena लंका-दहन. 

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