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मैं तुम्हारी खता तुम्हें क्यों समझाऊँ, मेरी खुशी

मैं तुम्हारी खता तुम्हें क्यों समझाऊँ, 
मेरी खुशी तुम्हारे आंसूओं की मोहताज नहीं।

 मैं अपनी खमोशी से उठे तूफानों को कैसे छिपाऊँ, 
 अभी इन ख्यालों अंधेरी रातों की आदत नहीं। 

नादान से इस दिल को तुम्हारा इंकार कैसे बताऊँ, 
मोहब्बत की मसूमियत इस इंकार को मानती नहीं। 

इश्क़ की स्याही से लिखी यादों को कैसे मिटाऊँ, 
कैद हो इन अल्फ़ाज़ों में, अब आजादी उसे पसंद नहीं। 

मैं अपने ख्वाब- ए- फिरदौस को लफ्ज़ों से कैसे सजाऊँ, 
तुम्हारी मुस्कान में महकते वो लफ्ज़ अब मेरे गुलाम नहीं। #dayend
मैं तुम्हारी खता तुम्हें क्यों समझाऊँ, 
मेरी खुशी तुम्हारे आंसूओं की मोहताज नहीं।

 मैं अपनी खमोशी से उठे तूफानों को कैसे छिपाऊँ, 
 अभी इन ख्यालों अंधेरी रातों की आदत नहीं। 

नादान से इस दिल को तुम्हारा इंकार कैसे बताऊँ, 
मोहब्बत की मसूमियत इस इंकार को मानती नहीं। 

इश्क़ की स्याही से लिखी यादों को कैसे मिटाऊँ, 
कैद हो इन अल्फ़ाज़ों में, अब आजादी उसे पसंद नहीं। 

मैं अपने ख्वाब- ए- फिरदौस को लफ्ज़ों से कैसे सजाऊँ, 
तुम्हारी मुस्कान में महकते वो लफ्ज़ अब मेरे गुलाम नहीं। #dayend