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शब्द शूल हो चले भाषा अस्त्र हो चली वार्ताएं मूल से

शब्द शूल हो चले भाषा अस्त्र हो चली
वार्ताएं मूल से हटी मानवता त्रस्त हो चली
महत्वपूर्ण प्रत्येक है मित्रता पर जो टिकी
सभ्यता न जाने किस मार्ग पर निकल चली
.
जीवन सीमित श्वास सीमित सम्बंध संकुचित
क्षमा उद्विग्न हो समर को है कहाँ ले चली
प्रहर जल रहे समय दुविधा में बैठा है मौन
घड़ियां प्रेम की बैर बंधन में हैं लीन हो चली
.
व्यक्तिगत में सुधार प्रस्तुत करता है संभावनाएं
संशोधन एकाकी का पुष्ट करता है भावनाएं
जीवित हो तो स्वर विवेक के जारी किये जायें
क्यों न पाठ्यक्रम प्रकृति के हम पुनः पढ़ आएं
.
धीर शूल
शब्द शूल हो चले भाषा अस्त्र हो चली
वार्ताएं मूल से हटी मानवता त्रस्त हो चली
महत्वपूर्ण प्रत्येक है मित्रता पर जो टिकी
सभ्यता न जाने किस मार्ग पर निकल चली
.
जीवन सीमित श्वास सीमित सम्बंध संकुचित
क्षमा उद्विग्न हो समर को है कहाँ ले चली
प्रहर जल रहे समय दुविधा में बैठा है मौन
घड़ियां प्रेम की बैर बंधन में हैं लीन हो चली
.
व्यक्तिगत में सुधार प्रस्तुत करता है संभावनाएं
संशोधन एकाकी का पुष्ट करता है भावनाएं
जीवित हो तो स्वर विवेक के जारी किये जायें
क्यों न पाठ्यक्रम प्रकृति के हम पुनः पढ़ आएं
.
धीर शूल

शूल