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"इस ढाई आखर में, न जाने क्या-क्या है बसा, पल, दिन,

"इस ढाई आखर में, न जाने क्या-क्या है बसा,
पल, दिन, महीने, साल, सब इसमें समा गए । 

कभी जनवरी की 'पतंग' से, अरमान लहराए, 
कभी फरवरी के 'गुलाब' से, मन महकाए, 
तो कहीं मार्च की गुनगुनी धूप सा कोई हँसा,
पल, दिन, महीने, साल, सब इसमें समा गए । 

अप्रैल के पन्नों में, मिलन और जुदाई के रंग, 
मई-जून में तपते-निखरते, जाने कितने संग,
तो कहीं जुलाई की आस में, दिल कोई तरसा, 
पल, दिन, महीने, साल, सब इसमें समा गए । 

अगस्त-सितंबर में, मन मयूर बन थिरके हैं,
अक्टूबर-नवम्बर में, आँखों से आँसू भटके हैं,
तो कहीं दिसंबर की अंगड़ाई में कोई फँसा,
पल, दिन, महीने, साल, सब इसमें समा गए।।"
#'ढाई आखर..अधूरा होकर भी पूरा' From - My Book- 'DHAI AAKHAR'

#yqbaba #yqdidi #hindipoetry #feelings #love #ढाई_आखर
"इस ढाई आखर में, न जाने क्या-क्या है बसा,
पल, दिन, महीने, साल, सब इसमें समा गए । 

कभी जनवरी की 'पतंग' से, अरमान लहराए, 
कभी फरवरी के 'गुलाब' से, मन महकाए, 
तो कहीं मार्च की गुनगुनी धूप सा कोई हँसा,
पल, दिन, महीने, साल, सब इसमें समा गए । 

अप्रैल के पन्नों में, मिलन और जुदाई के रंग, 
मई-जून में तपते-निखरते, जाने कितने संग,
तो कहीं जुलाई की आस में, दिल कोई तरसा, 
पल, दिन, महीने, साल, सब इसमें समा गए । 

अगस्त-सितंबर में, मन मयूर बन थिरके हैं,
अक्टूबर-नवम्बर में, आँखों से आँसू भटके हैं,
तो कहीं दिसंबर की अंगड़ाई में कोई फँसा,
पल, दिन, महीने, साल, सब इसमें समा गए।।"
#'ढाई आखर..अधूरा होकर भी पूरा' From - My Book- 'DHAI AAKHAR'

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