लिखकर हमने वह भी कह दिया जिसे कहकर व्यक्त करने में सहज नहीं रहे। तभी लिखना.. कहने के सापेक्ष सरल बताया गया। मैं भी सुनिश्चित कर लेना चाहती थी शब्दों की विस्तृत परिपाटी पर अव्यक्त और व्यक्त के मध्य.. अपनी उपस्थिति कि मैं कहाँ ठहरती हूँ कितना डूबती हूँ या उबरती हूँ बहना जानती हूँ या मात्र एक ही स्थान पर स्थिर हूँ। सहसा तभी.. कई पंक्तियाँ मेरे पास से गुज़र गईं और कुछ कविताएँ मुझे छूकर निकल गईं। लिखना भी सरल नहीं रहा..! --सुनीता डी प्रसाद💐💐 #लिखना सरल नहीं.. लिखकर हमने वह भी कह दिया जिसे कहकर व्यक्त करने में सहज नहीं रहे। तभी लिखना.. कहने के सापेक्ष