(तज़ुर्बा मोहब्बत का) न सीखा अपनों से न देखा किताबो से जो भी सीखा सीखा ज़माने से पहले तो प्यार करो उसका एहसास करो फिर धोके का इंतज़ार करो जब मिले ,तब उस पर विचार करो तब जा कर जो निष्कर्ष निकले उसे "तज़ुर्बा" कहते है।। मैं और मेरे कुछ तज़ुर्बे... मैं@तज़ुर्बे$सुर^वो।।