ज़िन्दगी यूं तो तुझसे नाराजगी बेपनाह है दरख़्त इन निग़ाहों में आज भी तुझसे रुबरु होने की चाह हैं मुंह फेर तो लूं मैं तुझसे ऐ ज़िन्दगी,पर कब तक.. भलेंही गुमनाम ही सही, पर तू मेरा ही तो हिस्सा है टूटती ख्वाहिशों का कभी, तो कभी नम आंखो से खामोश जुबां में बयां एक क़िस्सा है यूं तो तुझसे हजारों शिकवा गिला है जीवन की पहेली को सुलझाने का सलीका सीख लिया हमने ऐ ज़िन्दगी अब तो बस जज़्बातों को दबाए ख़ामोशी का सिलसिला है कर ना पाऊं तुझे अल्फाजों में बयां,खामोश जुबां का तू वो किस्सा है अधूरा ही सही मेरी ज़िन्दगी का तू एक मुक्कमल हिस्सा है... ###Mera hissa hai tu#